Dharma = holding wearable charecterstic in the wit power. Dharma is not baseless. Consisting the sum of Dayitvabodh + Adhikarbodh, Sense to Duties & Rights, It is based on three grounds (1) the development of the divine brain power + the spread of education. (2) Increment in physical work capacity + expansion of powerful generation (3) With safety of Ecology cycle social, political, economical setup gets even ( harmonious ), it does not cause asymmetry ( non harmonious ) to us.


प्रथम क्रम के धर्म में प्रथम प्राथमिकता आत्म-कल्याण होती है, दूसरे क्रम के धर्म में प्रथम प्राथमिकता वंश-कल्याण और तीसरे क्रम के धर्म में प्रथम प्राथमिकता सर्व-स्व-कल्याण यानी जगत कल्याण होता है.

In Dharma's first order the first priority is Soul-development, in Dharma's second order, the first priority is Gene-development. In Dharma's third order, the first priority is religious welfare through Ecological development.

प्रथम क्रम का धर्म आपके अपने ब्रह्म (आत्मभाव ) से जुड़ा एकात्म परम्परा का, आत्मकल्याण का विषय है अतः पूर्णतय़ा आपका व्यक्तिगत धर्म होता है तथा दूसरे क्रम का धर्म आप के ब्रह्मप्रदत्त आत्म और ईश्वरप्रदत्त पारिवारिक वंश परम्परा से जुड़ा उभयपक्षी, अद्वैत होता है. Dharma's First order is the subject of Integral tradition, self development; related to your own divine brain (Atmbhav), so it is completely your personal Dharma. and Dharma's second order is bilateral, non dual ( advait ), related to your devine brain given Aatm and Ether created family lineage.

दुनिया के जितने भी धार्मिक सम्प्रदाय हैं. उनमें इन दोनों बिन्दुओं पर कहीं भी मतभेद नहीं हैं,सिर्फ़ शब्दानुवाद का फ़र्क है. क्योंकि ब्रह्म और ईश्वर सर्वत्र एक समान होते हैं,यहाँ तक कि वनस्पति और प्राणियों में भी भेद नहीं होता.

In all the the world's religious communities, there are no conflicts over these two points anywhere them, just a discrepancy of the literal translation, The divine brain and God are the same everywhere, even in plants and animals do not distinct,

लेकिन तीसरे क्रम का धर्म जो कि सम्प्रदाय कहा जाता है,वह समाज-विज्ञान ,राजनीति-विज्ञान और अर्थशास्त्र के तीन आधारों पर टिका होता है. इसमे ही अज्ञान जनित मतभेद हैं. ये तीनों आधार मानव स्वभाव की त्रिगुणात्मक प्रकृति के तीन गुणा तीन गुणों पर अपना विस्तार करते हैं। जिन्हें सात्विक, राजसी और तामसी कहा जाता है।

But the the ignorance generated conflicts are only of this third order of Dharma, that is religion,is based on three grounds of social science, political science and economics.These three bases expand onto three multiple three of 'three Natural human charecterstics'. These are called Saatvik, Raajsee,Taamsee.

विशेष पर्यावरण में विशेष आहार, विशेष उत्पादन, जीविकोपार्जन के विशेष तरीक़े,विशेष काल स्थान परिस्थिति,विशेष स्वभाव के आधार पर धार्मिक सम्प्रदायों के नियमों का संविधान बनता है. जो धर्म के उक्त दोनों आयामों (आत्मभाव व स्वार्थभाव) से मुक्त परमार्थ (सामुहिक स्वार्थ ) भाव से बनाए जाते हैं. उसे चाहे शास्त्र कह दो,संविधान कह दो या फिर आसमानी किताब कह दो या फिर परंपरा, रीति-रिवाज,मान्यताएं,ट्रेडिशन कह दो. इन्हीं को सांप्रदायिक मान्यताएं कहा जाता है.इन मान्यताओं में समूह के प्रत्येक सदस्य को समानता प्रदान की जाती है।इसीलिए इसे संप्रदाय कहते हैं। इंसान ही इन सम्प्रदायों की मान्यताये काल-स्थान-प्ररिस्थिति के अनुरूप बनाता ।

आज न सिर्फ इन विभिन्न सम्प्रदायों की पृष्ट भूमि पर अध्ययन करने की आवशकता है बल्कि इनकी मूल अवधारणाओं को आज के यथार्थ के अनुरूप पुनः प्रतिष्ठित-स्थापित करने की आवश्कता है।

संविधान जो कि राष्ट्रीय धर्म है वह भी सम्प्रदाय वर्ग में आता है.आज यदि हम भारत को अग्रणी और विश्वगुरु बनाना चाहते हैं तो हमें इस तरह के परिवर्तन करने होंगे जो अन्य देशों के लिए भी अनुकरणीय हो।

अन्य देश भारत को आदर्श व्यवस्था वाला माने और हम उनके अग्रज बनें.


Specific environmental special diets, special products, special way of living, especially during the field condition,based on idiosyncratic rules of the Constitution gives religious communities. The two dimensions of the religion (Atmbav and Swarthbav)-free charitable (social interests) are created with the idea. The scriptures say it, say the Constitution say the book or the sky or the tradition, customs - customs, beliefs, tradition and religious beliefs say these two are called. These assumptions is provided in the group, each member of the equality . why the denomination says. One of these communities Manytaye time - place - makes Prristhiti suit.

Now not only on the backdrop of these different communities to study their basic concepts Avskta but reinstate in accordance with today's reality - there is a need to establish.

Other India, the ideal system to be considered and their elder.

कृपया सभी ब्लॉग पढ़ें और प्रारंभ से,शुरुआत के संदेशों से क्रमशः पढ़ना शुरू करें तभी आप सम्पादित किये गए सभी विषयों की कड़ियाँ जोड़ पायेंगे। सभी विषय एक साथ होने के कारण एक तरफ कुछ न कुछ रूचिकर मिल ही जायेगा तो दूसरी तरफ आपकी स्मृति और बौद्धिक क्षमता का आँकलन भी हो जायेगा कि आप सच में उस वर्ग में आने और रहने योग्य हैं जो उत्पादक वर्ग पर बोझ होते हैं।


Saturday, 1 September 2012

विज्ञान के विद्यार्थी बंधुओं को विज्ञान के एक विद्यार्थी का नमस्कार !

 प्रिय विद्यार्थी बंधुओं नमस्कार,

  • मानव मस्तिष्क की एक विशेषता होती है कि वह न सिर्फ एक जीवन में जीवनपर्यंत सीखता रहता है बल्कि जीवन-दर-जीवन ब्रेन का क्रमिक विकास भी होता रहता है। इस प्रक्रिया को आत्म-कल्याण की प्रक्रिया और इस विषय में किये जाने वाले प्रयास को आत्म-कल्याण हेतु किया जाने वाला कार्य कहा जाता है।  
  • आपने एक समस्या से खुद भी सामना किया होगा और दूसरों से भी सुना होगा कि "याद नहीं रहता"! अतः यह भी जान लें कि इस आत्म-कल्याण की परम्परा को स्मृति परम्परा भी कहा जाता है और धर्म-परम्परा भी इसी को कहा गया है। 
  • अनेक बार आप कहते हैं कि मुझे इसका ज्ञान तो था लेकिन समय पर यह बात मेरे ध्यान में ही नहीं आयी, अनेक बार आप कहते हैं कि मैंने उस बात की तरफ ध्यान ही नहीं दिया। इस तरह यह स्मृति ध्यान-परम्परा के नाम से भी जानी जाती है।
  • आपने संस्कार शब्द भी सुना होगा। संस्कार एक तरह की प्रोसेस/प्रक्रिया है, इसको अवचेतन मन की स्मृति भी कहा जाता है अर्थात एक ऐसी स्मृति जो समय पर अनजाने में भी ज्ञान को ध्यान मे ले आती है। यदि किसी जानकारी का समय पर ध्यान नहीं आये तो ऐसे ज्ञान की उपयोगिता ही समाप्त हो जाती है। इसलिए संस्कार का महत्त्व है।
  • आप पुनर्जीवन की प्रक्रिया और मोक्ष के बारे में भी सुनते आये है। पुनर्जन्म के प्रति आपकी शंका इसलिए है कि जिस तरह प्रातः उठते ही आपको पिछले दिनों की स्मृति ताज़ा हो जाती है उस तरह पिछले जीवन की स्मृति ताज़ा नहीं हो पाती। 
  • अब आप इस बिंदु पर थोडा चिन्तन करें कि जब आपको दो-चार दिनों पूर्व की या कुछ महीनों या कुछ वर्षों पूर्व की स्मृति ही नहीं रहती है तो पूर्व जीवन की स्मृति कहाँ से रहेगी। 
  • आप भारत की जातीय परम्परा में ब्राह्मण को सबसे कुलीन जाति के रूप में भी जानते हैं...क्यों ! जबकि ब्राह्मण का अर्थ होता है जो ब्रह्म में रमण करता है। क्या ब्रह्म में रमण करने के लिए यानी अध्ययन के बाद विषय पर चिंतन-मनन करने के लिए किसी विशेष परिवार में पैदा होना पड़ता है ! हम सभी जीवन-पर्यंत कुछ न कुछ सीखते रहते हैं अतः विद्यार्थी भी हैं और चूँकि हमारे पास ब्रेन भी है और ब्रह्म में रमण भी करते हैं अतः हमें सबसे पहले तो अपने आप को ब्राह्मण मान कर चलना चाहिए और इस दिशा में आगे से आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए।
  • इस क्षेत्र में असंख्य विषय है अतः असंख्य दिशाएँ भी है इसी परिप्रेक्ष में ब्रह्मा के चारों दिशाओं में मुख दिखाये गये हैं।
  • आपको यदि स्मृति को मजबूत करना है तो इसका तरीका है आप किसी एक ही विषय में बँध कर उसे रटने का व्यर्थ या निरर्थक या अथक प्रयास करने के स्थान पर सभी विषयों का समान्तर Parallel और simultaneous समकालिक अध्ययन करें और एक-दूसरे विषय को ठीक उसी तरह गूँथ लें जिस तरह पहले धागा और बाद में उसी धागे से मछली पकड़ने का जाल गूँथा जाता है, तब आपकी स्मृति ज्ञान को ध्यान में बदल देगी। ठीक वैसे ही जैसे मछुआरा जाल को एक सिरे से थाम कर सैंकड़ों मछलियाँ पकड़ लेता है।चूँकि स्मृति का सम्बन्ध रूचि से होता है अतः यदि आपको पढ़ा हुआ याद नहीं रहता तो इसका अर्थ है उस विषय में रूचि नहीं है। रूचि पैदा करने के लिए एक ही तरीका है उस विषय से जुड़े सभी विषयों का अध्ययन एक साथ करें simultaneouslly करें किसी न किसी एक विषय में तो रूचि जागृत हो ही जायेगी तो सभी विषय याद रह जायेंगे।
  • स्मृति परम्परा के सामानांतर श्रुति परम्परा है अर्थात जो आपके पूर्ववर्तियों ने जाना है,खोजा है, Research, शोध, अनुसंधान, investigation किया है उसको सुनना या लिखा हुआ हो तो पढ़ना।ये दोनों परम्पराएँ उभयपक्षी Bipartite हैं अतः एक दुसरे की पूरक हैं।
  • इस तरह स्मृति व् संस्कार वाली ब्रह्म-परम्परा और श्रुति व् वैज्ञानिक खोज वाली वेद-परम्परा दोनों मिलकर अद्वेत हो जाती है।
  • आप यदि जीवविज्ञान और आयुर्विज्ञान के विद्यार्थी हैं अथवा रह चुके हैं अथवा इस विषय के जॉब से जुड़े हैं अथवा इस विषय में रूचि रखते हैं तो आप इन ब्लॉग्स पर विजिट करें तथा इस पोस्ट की  कॉपी करें और अपने परिचितों को भी भेजें। वेदव्यास के ब्लॉग्स का अध्ययन करने के बाद जीवजगत और आयुर्विज्ञान के साथ-साथ जीवन-काल और जीवन के बाद पुनः जीवन की प्रक्रिया के एक-एक बिंदु को आप सुस्पष्ट समझने में समर्थ हो जायेंगे।    


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